Saturday, December 21, 2024
HomeAstro Vaastuज्योतिष के शुभ योग

ज्योतिष के शुभ योग

ज्योतिष के चुने हुए शुभ योग

ज्योतिष विद्या में नौ ग्रहों, 12 राशियों और 27 नक्षत्रों का समावेश है जिसमें सभी की अपनी महत्ता है। सभी ग्रहों का अपने आप में महत्व है लेकिन कुछ ग्रह नकारात्मक होते है जैसे राहु, केतु, मंगल और शनि। जब भी ये ग्रह कुंडली में गलत भाव या स्थिति में बैठते हैं तो व्यक्ति को भारी नुकसान भुगतना पड़ता है। राहु ग्रह अपनी
दशा में ऐसी स्थितियां पैदा करता है जिसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता और जिसके आकस्मिक परिणाम होते है जो शुभ या अशुभ, हो सकते है।

ज्योतिष शास्त्र में पंचांग से तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण के आधार पर मुहूर्तों का निर्धारण किया जाता है। मुहूर्त किसी कार्य के लिए शुभ व अशुभ समय की अवधि को कहा जाता है।
मुहूर्त शास्त्र के अनुसार तिथि, वार, नक्षत्र, योग आदि के संयोग से शुभ या अशुभ योगों का निर्माण होता है। जिन मुहूर्तों में शुभ कार्य किए जाते हैं उन्हें शुभ मुहूर्त कहते हैं। इसके विपरीत अशुभ योगों में किए गए कार्य असफल होते हैं और उनका फल भी अशुभ होता है। शुभ व अशुभ योगों का निर्माण तिथियों, वारों व नक्षत्रों के संयोग से होता है और इसके लिए ग्रह दशा भी जिम्मेदार होती है। जन्म कुंडली में ग्रहों के योग से ही जातक के मंगल और अमंगल भविष्य का पूर्वानुमान लगाया जाता है और शुभ योग और अशुभ योग बताये जाते है। कुंडली में कुछ ग्रह योग अशुभ माने जाते हैं जो व्यक्ति के जीवन का सुख-चैन छीन लेते हैं, तो कुछ ऐसे शुभ ग्रह हैं जो व्यक्ति का जीवन संवार देते हैं।

शुभ योगों के नाम-

महालक्ष्मी योग

जातक के भाग्य में धन और ऐश्वर्य का प्रदाता महालक्ष्मी योग होता है। धनकारक योग या महालक्ष्मी योग तब बनता है जब द्वितीय स्थान का स्वामी जिसे धन भाव का स्वामी भी माना जाता है यानि गुरुग्रह बृहस्पति एकादश भाव में बैठकर द्वितीय भाव पर दृष्टि डाल रहा हो। यह योग बहुत ही शुभ माना जाता है। इससे जातक की दरिद्रता दूर होती है और समृद्धि उसका स्वागत करती है। लेकिन यह योग भी तभी फलीभूत होते हैं जब जातक योग्य कर्म कर रहा हो।

शुभ योग

किसी जातक की कुंडली में अगर राहु छठे भाव में स्थित होता है और उस कुंडली के केन्द्र में गुरु विराजमान होता है तो यहां अष्टलक्ष्मी नामक शुभ योग बनता है। जिस भी व्यक्ति की कुंडली में यह योग होता है वह व्यक्ति कभी धन के अभाव में नहीं रहता।

सरस्वती योग

सरस्वती जैसा महान योग जातक की कुंडली में तब बनता है जब शुक्र, बृहस्पति और बुध ग्रह एक दूसरे के साथ में हों या फिर केंद्र में बैठकर युति या फिर दृष्टि किसी भी प्रकार से एक दूसरे से संबंध बना रहे हों। यह योग जिस जातक की कुंडली में होता है उस पर मां सरस्वती मेहरबान होती हैं। इसके कारण रचनात्मक क्षेत्रों में विशेषकर कला एवं ज्ञान के क्षेत्र में बड़ा नाम कमाते हैं जैसे कला, संगीत, लेखन एवं शिक्षा के क्षेत्र में आप ख्याति प्राप्त कर सकते है।

नृप योग

ये योग अपने नाम के अनुसार ही है। जातक की कुंडली में यह योग तभी बनता है जब तीन या तीन से अधिक ग्रह उच्च स्थिति में रहते हों। जिस जातक की कुंडली में यह योग बनता है उस जातक का जीवन राजा की तरह व्यतीत होता है। अगर व्यक्ति राजनीति में है तो वह इस योग के सहारे शिखर तक पहुंच सकता हैं।

अमला योग

जब जातक की जन्म पत्रिका में चंद्रमा से दसवें स्थान पर कोई शुभ ग्रह स्थित हो तो यह योग बनता है। अमला योग भी व्यक्ति के जीवन में धन और यश प्रदान करता है।

गजकेसरी योग

असाधारण योग की श्रेणी का योग है गजकेसरी। जब चंद्रमा से केंद्र स्थान में पहले, चौथे, सातवें या दसवें स्थान में बृहस्पति हो तो इस योग को गजकेसरी योग कहते हैं। इसके अलावा चंद्रमा और बृहस्पति का साथ हो तब भी इस योग का निर्माण होता हैं। पत्रिका के लग्न स्थान में कर्क, धनु, मीन, मेष या वृश्चिक के होने पर यह कारक प्रभाव माना जाता है। जिसकी जन्म कुंडली में यह योग बनता है वो व्यक्ति बहुत ही भाग्यशाली जातक होता है और वो कभी भी अभाव में जीवन व्यतीत नहीं करता।

पारिजात योग

जब कुंडली में लग्नेश जिस राशि में हो उस राशि का स्वामी यदि कुंडली में उच्च स्थान या फिर अपने ही घर में हो तो ऐसी दशा में पारिजात योग बनता है। इस योग वाले जातक अपने जीवन में कामयाब होते हैं और सफलता के शिखर पर भी पंहुचते हैं लेकिन रफ्तार धीमी रहती है। लगभग आधा जीवन बीत जाने के बाद इस योग के प्रभाव दिखाई देने लगते हैं।

छत्र योग

जब जातक की कुंडली में चतुर्थ भाव से दशम भाव तक सभी ग्रह मौजूद हों तब यह योग बनता है। जब जातक अपने जीवन में निरंतर प्रगति करते हुए उन्नति करते हुए उच्च पदस्थ प्राप्त करता है तो छत्र योग के कारण ही सब संभव होता है। छत्र योग भगवान की छत्रछाया यानि प्रभु की कृपा वाला योग माना जाता है।
पंचमहापुरुष योग – शश योग, हंस योग, मालव्य योग, रूचक योग एवम भद्र योग

शश योग

यह योग पंचमहापुरुष योग में से एक है। यदि किसी कुंडली में शनि लग्न से अथवा चन्द्रमा से केन्द्र के घरों में स्थित हों अर्थात शनि यदि किसी कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में तुला, मकर अथवा कुंभ राशि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में शश योग बनता है। इसके शुभ प्रभाव से व्यक्ति को स्वास्थ्य, लंबी आयु, परिश्रम करने वाला स्वभाव, विशलेषण करने की क्षमता, निरंतर तथा दीर्घ समय तक प्रयास करते रहने की क्षमता, सहनशीलता, छिपे हुए रहस्यों का भेद जान लेने की क्षमता तथा कूटनीतिक क्षमता, विभिन्न प्रकार के कार्यक्षेत्रों में सफलता आदि प्रदान करता है।

हंस योग

यदि किसी कुंडली में बृहस्पति अर्थात गुरु लग्न से अथवा चन्द्रमा से केन्द्र के घरों में स्थित हों अर्थात बृहस्पति यदि किसी कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में कर्क, धनु अथवा मीन राशि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में हंस योग बनता है। इसके शुभ प्रभाव से व्यक्ति को सुख, समृद्धि, संपत्ति, आध्यात्मिक विकास तथा कोई आध्यात्मिक शक्ति भी मिल मिल सकती है।

मालव्य योग

यदि किसी कुंडली में शुक्र लग्न से अथवा चन्द्रमा से केन्द्र के घरों में स्थित हों अर्थात शुक्र यदि किसी कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में वृष, तुला अथवा मीन राशि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में मालव्य योग बनता है। इसके शुभ प्रभाव से व्यक्ति को साहस, पराक्रम, शारीरिक बल, तर्क करने की क्षमता तथा समयानुसार उचित निर्णय लेने की क्षमता प्रदान कर सकता है।

रूचक योग

यदि किसी कुंडली में मंगल लग्न से अथवा चन्द्रमा से केन्द्र के घरों में स्थित हों अर्थात मंगल यदि किसी कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में मेष, वृश्चिक अथवा मकर राशि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में रूचक योग बनता है। इसके शुभ प्रभाव से व्यक्ति को शारीरिक बल तथा स्वास्थ्य, पराक्रम, साहस, प्रबल मानसिक क्षमता, समयानुसार उचित तथा तीव्र निर्णय लेने की क्षमता, व्यवसायिक क्षेत्रों में सफलता तथा प्रतिष्ठा आदि मिलती है।

भद्र योग

यदि किसी कुंडली में बुध लग्न से अथवा चन्द्रमा से केन्द्र के घरों में स्थित हों अर्थात बुध यदि किसी कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में मिथुन अथवा कन्या राशि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में भद्र योग बनता है। इसके शुभ प्रभाव से व्यक्ति को युवापन, बुद्धि, वाणी कौशल, संचार कौशल, विशलेषण करने की क्षमता, परिश्रम करने का स्वभाव, चतुराई, व्यवसायिक सफलता, कलात्मकता तथा अन्य कई प्रकार के शुभ फल प्रदान होते है।

बुध आदित्य योग

जब किसी कुंडली के किसी घर में जब सूर्य तथा बुध संयुक्त रूप से स्थित हो जाते हैं तो ऐसी कुंडली में बुध आदित्य योग का निर्माण हो जाता है। इसके शुभ प्रभाव से व्यक्ति को बुद्धि, विशलेषणात्मक क्षमता, वाक कुशलता, संचार कुशलता, नेतृत्व करने की क्षमता, मान, सम्मान, प्रतिष्ठा तथा ऐसी ही अन्य कई प्रकार के शुभ लाभ होते है।

सिद्धि योग

जब किसी कुंडली में वार, नक्षत्र और तिथि के बीच आपसी तालमेल होने पर सिद्धि योग का निर्माण होता है। उदाहरण स्वरूप सोमवार के दिन अगर नवमी अथवा दशमी तिथि हो एवं रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, श्रवण और शतभिषा में से कोई नक्षत्र हो तो सिद्धि योग बनता है। इस योग से जातक को सिद्धि पर्पट होती है।

महाभाग्य योग

यदि किसी पुरुष का जन्म दिन के समय का हो तथा उसकी जन्म कुंडली में लग्न अर्थात पहला घर, सूर्य तथा चन्द्रमा, तीनों ही विषम राशियों जैसे कि मेष, मिथुन, सिंह आदि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में महाभाग्य योग बनता है। यदि किसी स्त्री का जन्म रात के समय का हो तथा उसकी जन्म कुंडली में लग्न, सूर्य तथा चन्द्रमा तीनों ही सम राशियों अर्थात वृष, कर्क, कन्या आदि में स्थित हों तो ऐसी स्त्री की कुंडली में महाभाग्य योग बनता है। इसके शुभ प्रभाव से व्यक्ति को आर्थिक समृद्धि, सरकार में कोई शक्तिशाली पद, प्रभुत्व, प्रसिद्धि तथा लोकप्रियता आदि जैसे शुभ फल मिलते है।

सर्वार्थ सिद्धि योग

यह शुभ योग वार और नक्षत्र के मेल से बनने वाला योग है। गुरुवार और शुक्रवार के दिन अगर यह योग बनता है तो एक तिथि विशेष को यह योग बनता है। कुछ विशेष तिथियों में यह योग निर्मित होने पर यह योग नष्ट भी हो जाता है। सोमवार के दिन रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, अनुराधा, अथवा श्रवण नक्षत्र होने पर सर्वार्थ सिद्धि योग बनता है जबकि द्वितीया और एकादशी तिथि होने पर यह शुभ योग अशुभ मुहूर्त में बदल जाता है।

अमृत सिद्धि योग

यह योग वार और नक्षत्र के तालमेल से बनता है। इस योग के बीच अगर तिथियों का अशुभ मेल हो जाता है तो अमृत योग नष्ट होकर विष योग में परिवर्तित हो जाता है। सोमवार के दिन हस्त नक्षत्र होने पर जहां शुभ योग से शुभ मुहूर्त बनता है लेकिन इस दिन षष्ठी तिथि भी हो तो विष योग बनता है। अमृत सिद्धि योग अपने नामानुसार बहुत ही शुभ योग है। इस योग में सभी प्रकार के शुभ कार्य किए जा सकते हैं।

गुरु पुष्य योग

गुरुवार और पुष्य नक्षत्र के संयोग से निर्मित होने के कारण इस योग को गुरु पुष्य योग के नाम से सम्बोधित किया गया है। यह योग गृह प्रवेश, ग्रह शांति, शिक्षा सम्बन्धी मामलों के लिए अत्यंत श्रेष्ठ माना जाता है। यह योग अन्य शुभ कार्यों के लिए भी शुभ मुहूर्त के रूप में जाना जाता है।

रवि पुष्य योग

इस योग का निर्माण तब होता है जब रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र होता है। यह योग शुभ मुहूर्त का निर्माण करता है जिसमें सभी प्रकार के शुभ कार्य किए जा सकते हैं। इस योग को मुहूर्त में गुरु पुष्य योग के समान ही महत्व दिया गया है

पुष्कर योग

इजब किसी कुंडली में सूर्य विशाखा नक्षत्र में होता है और चन्द्रमा कृतिका नक्षत्र में होता है। सूर्य और चन्द्र की यह अत्यंत दुर्लभ होने से इस योग को शुभ योगों में विशेष महत्व दिया गया हैये सभी शुभ कार्यों के लिए उत्तम मुहूर्त होता है। यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा लग्नेश अर्थात पहले घर के स्वामी ग्रह के साथ हो तथा यह दोनों जिस राशि में स्थित हों उस राशि का स्वामी ग्रह केन्द्र के किसी घर में स्थित होकर अथवा किसी राशि विशेष में स्थित होने से बलवान होकर लग्न को देख रहा हो तथा लग्न में कोई शुभ ग्रह उपस्थित हो तो ऐसी कुंडली में पुष्कल योग बनता है। इसके प्रभाव से जातक को आर्थिक समृद्धि, व्यवसायिक सफलता तथा सरकार में प्रतिष्ठा तथा प्रभुत्व का पद प्रदान कर सकता है।

अधि योग

यदि यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा से 6, 7 अथवा आठवें घर में गुरु, शुक्र अथवा बुध स्थित हो जाते हैं तो ऐसी कुंडली में अधि योग बनता है। ये योग जातक को प्रभुत्व, प्रतिष्ठा तथा सामाजिक प्रभाव प्रदान कर सकता है।

चन्द्र मंगल योग

जब किसी कुंडली में चन्द्रमा तथा मंगल का संयोग बनता है तो चन्द्र मंगल योग बनता है। इससे जातक को चन्द्रमा तथा मंगल के स्वभाव, बल तथा स्थिति आदि के आधार पर विभिन्न प्रकार के शुभ अशुभ फल प्रदान कर सकता है।

सुनफा योग

यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा से अगले घर में कोई ग्रह स्थित हो तो कुंडली में सुनफा योग बनता है। इससे जातक को धन, संपत्ति तथा प्रसिद्धि प्रदान कर सकता है। किसी कुंडली में केवल सूर्य के ही चन्द्रमा से अगले घर में स्थित होने पर कुंडली में सुनफा योग नहीं बनता बल्कि ऐसी स्थिति में सूर्य के साथ कोई और ग्रह भी उपस्थित होना चाहिए।

अनफा योग

यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा से पिछले घर में कोई ग्रह स्थित हो तो कुंडली में अनफा योग बनता है। इसके शुभ प्रभाव से जातक को स्वास्थ्य, प्रसिद्धि तथा आध्यात्मिक विकास प्रदान कर सकता है।

दुर्धरा योग

यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा से पिछले घर में तथा चन्द्रमा से अगले घर में कोई ग्रह स्थित हो तो कुंडली में दुर्धरा योग बनता है। इससे जातक को शारीरिक सुंदरता, स्वास्थ्य, संपत्ति तथा समृद्धि प्रदान कर सकता है।

पर्वत योग

किसी कुंडली में केन्द्र के प्रत्येक घर में यदि कम से कम एक ग्रह स्थित हो तो कुंडली में पर्वत योग बनता है जो जातक को उपर बताए गए शुभ फल प्रदान कर सकता है। वहीं पर कुछ अन्य वैदिक ज्योतिषी यह मानते हैं कि यदि किसी कुंडली में केन्द्र के प्रत्येक घर अर्थात 1, 4, 7 तथा 10वें घर में कम से कम एक ग्रह स्थित हो तथा कुंडली के 6 तथा 8वें घर में कोई भी ग्रह स्थित न हो तो कुंडली में पर्वत योग बनता है। किसी कुंडली में इस योग के बनने से जातक को धन, संपत्ति, प्रतिष्ठा तथा सम्मान आदि की प्राप्ति होती है।

वेशि योग

यदि किसी कुंडली में सूर्य से अगले घर में कोई ग्रह स्थित हो तो कुंडली में वेशि योग बनता है। इससे जातक को अच्छा चरित्र, यश तथा प्रसिद्धि प्रदान करता है।

वाशि योग

किसी कुंडली में सूर्य से पिछले घर में कोई ग्रह स्थित हो तो कुंडली में वाशि योग बनता है। इससे जातक को स्वास्थ्य, प्रसिद्धि, आर्थिक समृद्धि तथा किसी सरकारी संस्था में लाभ एवम प्रभुत्व का पद प्रदान होता है।

उभयचरी योग

यदि किसी कुंडली में सूर्य से पिछले घर में तथा सूर्य से अगले घर में कोई ग्रह स्थित हो तो कुंडली में उभयचरी योग बनता है। इससे जातक को नाम, यश, प्रसिद्धि, समृद्धि, प्रभुत्व का पद आदि प्रदान हो

Rohitt Shah
Rohitt Shah
Vastu Acharya, Master Numerologist, Astro-Vastu and Lal Kitab Expert, iBazi Profile Charter.
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments